मन वचन काया की सरलता का नाम आर्जव धर्म है सरलता तो हमारा स्वभाव ही है- आर्यिका श्री
प्राशु जैन जरुआखेड़
सागार। उत्तम आर्जव धर्म के दिन धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कपट ना कीजिए कोई, “चोरन के पुर ना बसें सरल स्वभावी होए, ताके के घर बहुत संपदा” गिरगिट जैसा रूप बदलता रहता है आदमी छल कपट कहलाता है आदमी पेट नहीं पेटी भरने दौड़ रहा है कुछ लोग तो धर्म क्षेत्र में भी पाप करते रहते हैं यहां भी छल कपट करते हैं जो धार्मिक क्षेत्र में छल कपट करता है वह आगे चलकर मंदिर का कबूतर बनता है जो धार्मिक क्षेत्र का पैसा खाता है वह आगे चलकर चमगादर बनता है इसलिए छल कपट नहीं करना चाहिए आर्जव धर्म यही सिखाता है
उदाहरण देते हुए कहा एक बार मेरे पास दो दंपत्ति आए और कहने लगे माताजी मुझे अच्छा आशीर्वाद दो मैंने उनसे पूछा कि अच्छा आशीर्वाद क्या होता है तो उन्होंने बताया माताजी हम दोनों जन्म जन्म तक एक साथ रहे तब माताजी ने उन्हों से पूछा कि आप दोनों में कभी लड़ाई नहीं होती कभी माया चारी नहीं रहती तो कहने लगे नहीं माता जी हम दोनों तो एक दूसरे के बिना खाना तक नहीं खाते लेकिन ऐसा कोई भी नहीं है जिसके अंदर छल कपट माया जारी नहीं है तब उन्होंने एक दृष्टांत देकर बताया एक बार एक ठाकुर एक ठकुराइन थी दोनों एक साथ रहते थे बहुत अच्छा प्रेम था एक दूसरे के अंदर दोनों एक साथ खाना खाते थे एक दिन एक व्यक्ति ने ठाकुर साहब से पूछा कि आपकी ठकुराइन आपके साथ खाना खाती हैं तब ठाकुर साहब ने कहा जी हां मैं अगर घर पर शाम भी पहुंचे तो तब तक खाना नहीं खाती तब उसने समझाया और उनसे कहा कि एक बार इनकी परीक्षा जरूर लें तब ठाकुर ने ठकुराइन से कहा मैं खेत जा रहा हूं और ठाकुर खेत निकल गए ठाकुर की खेत निकलने पर ठकुराइन ने उसके यहां काम करने वाले व्यक्ति से कहा जाओ और गन्ना लेकर आओ तभी ठकुराइन ने घर पर खाना बनाया अच्छा और खाने बैठ गई उसने सोचा ठाकुर साहब तो अभी खेत गए तभी अचानक से ठाकुर वापस आ गए और उन्होंने देख लिया सही कहा था उसने कि मेरी ठकुराइन माया चारी करती है तभी ठकुराइन ने ठाकुर से पूछा आप तो खेत गए थे फिर आप वापस कैसे आ गए उन्होंने कहा मैं जब जा रहा था रास्ते मैं मुझे तुम्हारे पास क्यों गन्ना रखा है उसके बराबर मुझे सांप मिला और जो तुम्हारी कड़ी में घी लहरा रहा है उसी प्रकार वह भी लहरा कर चल रहा था बस इसी को देख कर मैं वापस आ गया लेकिन मैं तो तुम्हें बहुत ईमानदार समझता था लेकिन तुम्हारे अंदर भी छल कपट है इस प्रकार अनेक उदाहरण देते हुए प्रवचन का समापन हुआ
मध्यान्ह 3:00 बजे आर्यिका श्री 105 प्रशांत मति माताजी के द्वारा तत्वार्थ सूत्र का वचन तृतीय अध्याय का अर्थ सहित समझाया गया
शाम 6:30 से 7:30 तक आर्यिका श्री 105 विशुद्ध मति माताजी के द्वारा ध्यान शिविर लगाया गया जिसमें सकल दिगंबर जैन समाज ने ध्यान शिविर में बैठकर ध्यान किया
माता जी के द्वारा ध्यान में ही क्षेत्रों की वंदना भी कराई जाती है
रात्रि 7:30 बजे से 9:00 बजे तक मंगल आरती आयोजन किया गया