भारतीय संस्कृति का गौरव-हमारी मातृभाषा हिन्दी – डॉ.सुरेन्द्र पाठक
सागर। स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय सागर में आज दिनांक 14 सितम्बर 2021 को हिन्दी दिवस के अवसर पर हिन्दी विभाग के तत्वाधान में ʻʻभारतीय संस्कृति का गौरव मातृभाषा हिन्दीʼʼ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलन के उपरांत अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए संस्थापक कुलपति डॉ. अनिल तिवारी जी ने कहा कि- हमारे देश में ही हिंदी का महत्व कुछ खो सा गया है, यहाँ पर अंग्रेजी बोलने वाली आबादी को समझदार माना जाता है और हिंदी बोलने वाली आबादी को सभ्य और समझदार समझा जाता है। यह देखना बहुत ही दुखद है कि नौकरी साक्षात्कार के दौरान, अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को दूसरों से अधिक वरीयता दी जाती है। यह पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण को समाज से दूर करने का समय है। हिन्दी को बढ़ाने के लिए विमर्षी संस्कृति लाना जरूरी है क्योंकि भाषा की लोकप्रियता और शुद्धता में समझौता का ही समन्वय होता है। हम नित नये शोध अपनी भाषा के अनुसार करते हैं हमारे देष की विषेषता अनेकता में एकता है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण हिन्दी में आये हुए शब्दों का प्रयोग दिखता है हम आषा करते हैं कि हम भविष्य में वर्तमान के 18 प्रतिषत हिन्दी को 100 प्रतिषत बनायेंगे।
मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए डॉ. सुरेन्द्र पाठक ने कहा कि- लम्बी यात्रा के बाद हिन्दी अपने सामर्थ्य को दिखाने का अवसर मिला, हिन्दी में देशज सभी शब्दों को समाहित किया यही उसकी विशेषता है। राष्ट्रीय अनुवाद मिशन से ये और समृद्ध होगी क्योंकि इसका प्रचार प्रसार होगा। वैदिक परम्परा के ज्ञान-विज्ञान सभी के दृष्टिकोण भारतीय संस्कृति एक धारा है। अपनी परंपरा प्रतिष्ठित करता है। ज्ञान विवेक को हृदयांगत करते हैं तो वह हिन्दी होती है क्योंकि वो मन से, हृदय से निकलती है भाषा के मूल में भाव है, प्रत्येक भाषा का मूल भाव है। भाव ही हमारी मौलिक परंपरा है। हम हिन्दी के सामर्थ्य के कारण ही विश्व गुरु बने हैं।
स्वागत भाषण में प्रभारी कुलपति डॉ.नीरज तोपखाने ने कहा-हिंदी दिवस हमारी राष्ट्रीय भाषा के साथ-साथ हमारी संस्कृति के महत्व पर जोर देने के लिए एक महान कदम है। यह युवाओं को उनकी जड़ों के बारे में याद दिलाने का एक तरीका है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहाँ पहुंचते हैं और हम क्या करते हैं, अगर हम अपनी जड़ों के साथ ग्राउंड और सिंक रहते हैं, तो हम अचूक रहते हैं। प्रत्येक वर्ष, ये दिन हमें हमारी वास्तविक पहचान की याद दिलाता है और हमें अपने देश के लोगों के साथ एकजुट करता है। आभार प्रदर्शन अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष डॉ. आशुतोष शर्मा द्वारा किया गया। इस अवसर पर डॉ. मनीष मिश्र, डॉ. शैलेन्द्र पाटिल, डॉ. बी.व्ही तिवारी, डॉ. सुनीता जैन, डॉ. सचिन तिवारी, श्री हरेन्द्र सारस्वत, डॉ. आशीष नामदेव, एवं समस्त शैक्षणिक, अषैक्षणिक कर्मचारी उपस्थित रहे। शांति मंत्र के साथ संगोष्ठी सम्पन्न हुई
मुख्य अतिथि की आसंदी से बोलते हुए डॉ. सुरेन्द्र पाठक ने कहा कि- लम्बी यात्रा के बाद हिन्दी अपने सामर्थ्य को दिखाने का अवसर मिला, हिन्दी में देशज सभी शब्दों को समाहित किया यही उसकी विशेषता है। राष्ट्रीय अनुवाद मिशन से ये और समृद्ध होगी क्योंकि इसका प्रचार प्रसार होगा। वैदिक परम्परा के ज्ञान-विज्ञान सभी के दृष्टिकोण भारतीय संस्कृति एक धारा है। अपनी परंपरा प्रतिष्ठित करता है। ज्ञान विवेक को हृदयांगत करते हैं तो वह हिन्दी होती है क्योंकि वो मन से, हृदय से निकलती है भाषा के मूल में भाव है, प्रत्येक भाषा का मूल भाव है। भाव ही हमारी मौलिक परंपरा है। हम हिन्दी के सामर्थ्य के कारण ही विश्व गुरु बने हैं।
स्वागत भाषण में प्रभारी कुलपति डॉ.नीरज तोपखाने ने कहा-हिंदी दिवस हमारी राष्ट्रीय भाषा के साथ-साथ हमारी संस्कृति के महत्व पर जोर देने के लिए एक महान कदम है। यह युवाओं को उनकी जड़ों के बारे में याद दिलाने का एक तरीका है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहाँ पहुंचते हैं और हम क्या करते हैं, अगर हम अपनी जड़ों के साथ ग्राउंड और सिंक रहते हैं, तो हम अचूक रहते हैं। प्रत्येक वर्ष, ये दिन हमें हमारी वास्तविक पहचान की याद दिलाता है और हमें अपने देश के लोगों के साथ एकजुट करता है। आभार प्रदर्शन अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष डॉ. आशुतोष शर्मा द्वारा किया गया। इस अवसर पर डॉ. मनीष मिश्र, डॉ. शैलेन्द्र पाटिल, डॉ. बी.व्ही तिवारी, डॉ. सुनीता जैन, डॉ. सचिन तिवारी, श्री हरेन्द्र सारस्वत, डॉ. आशीष नामदेव, एवं समस्त शैक्षणिक, अषैक्षणिक कर्मचारी उपस्थित रहे। शांति मंत्र के साथ संगोष्ठी सम्पन्न हुई