कोविड-19 के दूरगामी प्रभावों पर भी शोध जरूरी— प्रो दिवाकर सिंह राजपूत
सागर
“कोविड-19 महामारी के संकट काल में समूचा संसार समस्याओं के समाधान एवं जन सुरक्षा के लिए नवीन तकनीकों पर तेजी से काम कर रहा है। समाज में अनायास उपजे संकट से अनेक विषम परिस्थितियां देखने को मिल रही हैं। वास्तविक विश्व और वर्चुअल विश्व के बीच जीवन में सामाजिक चुनौतियों के समाधान खोजे जा रहे हैं।” ये विचार दिये प्रो दिवाकर सिंह राजपूत ने एक राष्ट्रीय बेवीनार में मुख्य वक्ता के रूप में उदबोधन देते हुए। डाॅ राजपूत ने कहा कि दो- तीन साल के बच्चों को और 60- 65 साल से ऊपर के वृद्धों को इन विषम परिस्थितियों में सामंजस्य बैठना सबसे कठिन देखा गया है। सामाजीकरण की शुरुआत अवस्था के चरणों से गुजर रहे बच्चे आने वाले 10-20 साल के बाद किस तरह के व्यवहारिक जीवन को सहज या असहज रूप में देख सकेंगे– यह समाजवैज्ञानिकों के सामने शोध का महत्वपूर्ण विषय है। डाॅ राजपूत ने कहा कि सामाजिक विलम्बना (सोशल लेग) की स्थितियों में शोध और भी जरूरी लगता है।
कोविड-19 के कारण तात्कालिक और दूरगामी प्रभाव दोनों ही सामाजिक शोध के विषय हो सकते हैं। जिन पर समस्या समाधान के साथ ही अध्ययन की आवश्यकता दिखायी देती है।
वेबीनार में डाॅ शैलेन्द्र देवलकर ने कहा कि कोरोना काल में वल्ड सप्लाई चेन प्रभावित हुई है। भारत ने जिस तरह से अन्य देशों की सहायता की है उससे भारत की साख बढ़ी है। आत्म निर्भर भारत के लिए एक नया आधार मजबूत हुआ है।
वेबीनार का आयोजन संयुक्त रूप से डाॅ गोपाल राव खेडकर महाविद्यालय अकोला और श्री नारायण राव राणा महाविद्यालय अमरावती द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डाॅ गोपाल राव धोले ने की। कार्यक्रम का संचालन डॉ कृष्णा महुरे ने किया और डाॅ सचिन होले ने आभार व्यक्त किया।