सामाजिक शोध अकादमिक साधना की तरह — प्रो दिवाकर सिंह राजपूत
सागर-
डाॅ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मध्यप्रदेश के समाजशास्त्र एवं समाजकार्य विभाग में पदस्थ प्रोफ़ेसर डाॅ दिवाकर सिंह राजपूत ने एक राष्ट्रीय बेवीनार/ऑनलाइन कार्यशाला के समापन समारोह में मुख्य वक्ता (विषय प्रवर्तक) के रूप में “शोध और शोधार्थी” विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि सामाजिक शोध एक अकादमिक साधना की तरह है। डाॅ राजपूत ने कहा कि सामाजिक शोध के लिए सबसे पहले अकादमिक व्यक्तित्व को आकार देना जरूरी है, जिसमें विषय के प्रति समर्पण, शोध दृष्टि और राष्ट्र निर्माण के विश्व कल्याण की भावनासमाहित हो। डाॅ राजपूत ने विद्यार्थियों, शोधार्थियों और शोध निर्देशकोंको सम्बोधित करते हुए कहा कि अकादमिक व्यक्ति का आचरण अनुकरणीय होता है, इसलिए शोध कार्य किसी तपस्वी की साधना की तरह कठिन और महत्वपूर्ण होता है। इसलिए शोध कार्य के पहले अकादमिक व्यक्तित्व को आदर्श आकार देना जरूरी प्रतीत होता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो बी के नागला ने कहा कि शोध के लिए पद्धति शास्त्र का ज्ञान जरूरी है। हम शोध क्यों करना चाहते हैं यह भी पहले सोचना चाहिए। विशिष्ट अतिथि के रूप में त्रिभुवन यूनिवर्सिटी नेपाल के डाॅ रामहरि ने कहा कि शोध के लिए नये आयाम पर सोचना चाहिए। हमारे पास शोध की दृष्टि और आधार है। प्राचार्य डॉ वीरेन्दर जी ने सभी को शुभकामनाएँ एवं आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम में डाॅ सचिन ने प्रतिवेदन वाचन किया। प्रतिभागियों ने अपने प्रश्न भी रखे, जिनका समाधान विषय विशेषज्ञों ने किया।
द्रोणाचार्य राजकीय महाविद्यालय गुरुग्राम हरियाणा के समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित पाँच दिवसीय ऑनलाइन राष्ट्रीय कार्यशाला के संयोजक डाॅ भूप सिंह गौर ने सभी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन एवं स्वागत डॉ आशा अहलावत ने किया।