12 एकड़ से ज्यादा रकवे की नरवाई से बनाया भूसा
आग लगने से रोककर पर्यावरण बचाने में अनूठी पहल
समूह की महिला ने 12 लाख की लागत से खरीदा नरवाई से भूसा बनाने का संयंत्र
सागर –
विकासखण्ड राहतगढ़ के ग्राम सीहोरा की महिलाओं ने घटती ऑक्सीजन बिगड़ते पर्यावरण को बचाने में अनूठी पहल की। सरगम स्व. सहायता समूह से जुड़ी श्रीमती प्रीति राजपूत ने समूह से लोन लेकर स्वयं की लागत और बैंक के ऋण कुल मिलाकर 12 लाख रूप्ये की राशि से एक नया ट्रेक्टर ट्रॉली और नरवाई बनाने की मशीन खरीदी वे खाली पडे़ खेतों में अपने उस ट्रेक्टर को चलाकर भूषा बनाने का काम कर रहीं हैं। अब तक उन्होंने 112 क्विंटल से अधिक भूषा बनाकर गौ-शाला को प्रदाय किया है। उनके इस कार्य से जहां गौ-शाला की निराश्रित गायों को साल भर के लिए भोजन का प्रबंध हुआ वहीं दूसरी ओर उन्होंने इतने बडे़ रकवे को आग लगाकर जलाने से बचा लिया है। नरवाई के जलाने से जमीन बंजर होती है। आग से खेत में रहने वाले पशु पक्षी और प्राणियों को नुक्सान पहुंचता है साथ ही पर्यावरण और तापकम में यह कार्य बहुत घातक होता है। प्रीति ने अपने पति की मदद से जिले में इस नये कार्य की शुरूवात की है। ज्ञातव्य है कि उनके समूह को जिला कलेक्टर दीपक सिंह ने गौ-शाला संचालन का दायित्व सौंपा है। गौ-शाला संचालक समूहों के साथ हुई बैठक में चर्चा करते हुए कलेक्टर महोदय ने भूषे की उपलब्धता के लिए नरवाई के इस्तेमाल की बात कही थी। अपने सागर प्रवास के दौरान तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव ने भी नरवाई से भूषा बनाने की मशीन के बारे में समूह की महिलाओं से चर्चा करते हुए बताया था। इन्हीं बातों से प्रेरित होकर उन्होंने नरवाई को भूषा बनाने का काम शुरू किया। आज उनकी गौ-शाला भूषे के मामले में आत्म निर्भर हो गई है। प्रीति बताती हैं कि अभी वे और खेतों में जहां नरवाई लगी है। भूषा बनाने का काम जारी रखें। अतिरिक्त भूषे को वे अन्य गौ-शालाओं में सप्लाई कर सकेंगी।
डॉ इच्छित गढ़पाले मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत ने बताया कि गौ-शाला संचालक इस समूह में अनुकरणीय पहल की है। जिले के अन्य किसानों से भी अपेक्षा की जाती है कि वे नरवाई को न जलायें। इससे पर्यावरण को घातक नुक्सान होता है। डॉ. गढ़पाले ने बताया कि मनरेगा के अंतर्गत पर्यावरण एवं जल संरक्षण के लिए जिले में विस्तृत कार्य योजना तैयार की गई है। 3500 शासकीय भवन जिनमें आंगनवाड़ी केन्द्र, स्कूल, पंचायत भवन शामिल हैंं। वहां रैन वॉटर हार्वेस्टिंग का काम प्रारंभ किया जा रहा है। अभी तक 500 भवनों में ये काम शुरू हो चुका है। वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए 3 वाय 2 वाय 2 मीटर के आकार का परकुलेशन टेंक जिसमें बिल्डिंग की छत से व्यर्थ बह जाने वाले वर्षा जल को भू-जल स्तर सुधार में संरक्षित किया जायेगा। इसके अलावा जिला जेल में कैदियों के द्वारा तैयार किये गये एक लाख से अधिक फलदार और छायादार पौधों को भी शासकीय तथा निजी जमीनों पर आगामी वर्षा काल में रोपित किया जाकर जिले के पर्यावरण को हरा-भरा प्रदूषण मुक्त ऑक्सीजन युक्त बनाये जाने की पहल है। जिले के भीतर वीरान और सूनी पहाड़ियों पर कंटूररेंच बनाकर वर्षा जल का संरक्षण के लिए काम चल रहा है।