रेलवे निजी हाथों में ना दे और यदि देना मजबूरी हो तो किराया निर्धारण का अधिकार केन्द्र सरकार अपने पास सुरक्षित रखें डॉ राजेंद्र चौबे
गढ़ाकोटा(सागर)//कांग्रेस सेवादल ग्रामीण जिला सागर के जिलाध्यक्ष डॉ राजेंद्र चौबे ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में लेख किया है कि रेलवे को जिस भाँति गुपचुप तरीके से निजी हाथों में सौंपा जा रहा है उसको दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए रेल मंत्री श्री पीयूष गोयल से मांग की है कि यदि सम्भव हो सके तो यह विसंगतिपूर्ण सौदा तुरन्त राष्ट्र एवं जनहित में रद्द कर दें और यदि सौदा रद्द करने उनकी सरकार की सामर्थ न हो तो दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार की भांति जैसा उन्होंने मेट्रो कम्पनी ठेका दिया था कि भांति ठेका दे । साथ ही किराया निर्धारण का अधिकार किसी भी हालत में निजी हाथों में ना दें अपितु यह अधिकार सरकार अपने पास सुरक्षित रखे ।
विज्ञप्ति में डॉ चौबे ने आगे लिखा है कि केंद्र सरकार ने अपने बरसों पुराने कमाने वाले सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री किया जाना अपने आप मे दुर्भाग्यपूर्ण है ।
ताज्जुब है कि इतने बड़े निर्णय में सरकार ने लोकसभा में इस बात को लेकर देश की अन्य पार्टियों को विश्वास में लिया गया या नहीं यह भी स्पष्ट नहीं किया और ना ही उनकी सहमति को लेकर कोई बात स्पष्ट की है। ऐसे महत्वपूर्ण व जनहितैषी उपक्रमों की बिक्री किया जाना नितांत अफसोसजनक है ऐसे ही यह रेलवे के 109 रूट पर चलने वाली 152 ट्रेनों को निजी हाथों में 35 साल के लिए सौंपा जा रहा है ऐसी जानकारी अखबार में प्रकाशित हुई है सबसे ज्यादा अचरज में डालने वाली बात है कि निजी हाथों को उक्त ट्रेनों का मनमाना किराया निर्धारित करने के लिए स्वतंत्रता भी दी जा रही है ।डॉ चौबे ने निजी हाथों में दी जा रही 108 ट्रैक की 151 ट्रेनों के किराए के निर्धारण का अधिकार निजी हाथों में देने का पुरजोर विरोध करते हुए लिखा है कि सर्वप्रथम सरकार को चाहिए कि रेलवे को निजी हाथों मैं ना दे कारण देश की गरीब व आम आवाम के परिवहन का यह इकलौता और सस्ता साधन है तथा इस सेक्टर से सरकार को कभी कोई हानि नहीं होती अपितु यह सरकार की आय का बहुत बड़ा स्रोत है यदि इसके बाद भी सरकार ने रेलवे को निजी हाथों में सौंपने की ठान ही ली हैं तो कम से कम किराया निर्धारण का अधिकार निजी हाथों में ना देकर उसे सरकार अपने पास रखें ताकि निजीकरण की निर्ममताओ और शोषण से आम आवाम और गरीबों को बचाया जा सके ।
विज्ञप्ति के अंत में लेख है कि सरकार को चाहिए कि जिस तरह दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने मेट्रो की सुविधा निजी हाथों में सौंपी थी तथा मेट्रो वालों ने सभी कार्य किया था और आम आवाम के हित के कामो पर जैसे संचालन एवं किराए पर नियंत्रण दिल्ली सरकार का रहा वैसा ही यहां करना चाहिए था यह निजीकरण देश तो क्या दुनिया में निजी क्षेत्र में अपने आप सबसे बड़ा अजूबा है दुनिया या हमारे यहाँ अभी तक जो भी निजीकरण हुआ है जैसे दिल्ली मेट्रो को ले तो उसमें सब कुछ कंपनी ने किया पर मेट्रो पर नियंत्रण दिल्ली सरकार का है और यहाँ केन्द्र सरकार अपनी फायदे के ट्रेक पर चलने वाली स्वंम 151 ट्रेनों को ही नहीं अपनी उस ट्रेक की पटरी,रेल्वे स्टेशन,ट्रेनों के इंजन,उनका ईंधन सब सरकार का और मालकियत सौप रही निजी कंपनी को और सबसे अधिक आपत्तिजनक किराए के निर्धारण का अधिकार भी निजी कंपनी को इतने अधिकार तो ईस्ट इंडिया कंपनी को भी नहीं दिए थे उस समय के भारतीय राजाओं ने यदि ऐसा होता है तो गरीब एवं आम आवाम जैसे कोरोना के लॉक डाउन के दौरान पैसा न होने से पैदल अपने-अपने घरों गांवों को निकल पड़े थे वैसे ही निजीकरण हो जाने मजबूरी में देश का आम आवाम पैदल ही अपने सफर करने के लिए मजबूर हो जाएगा ! जिससे गांधी के स्वप्नों पर कुठाराघात होगा जिसे कांग्रेस कभी बर्दाश्त नही करेगी ।
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