कहते हैं कि पिशाच एक जाति थी !
इनका निवास उजड़े घरों के खंडहरों, संस्कार-भृष्ट मनुष्यों, त्यक्त जलाशयों, मार्ग के किनारे के वृक्षों आदि में बताया गया है ! हम लोग आज भी भूत-पिशाच शब्द उच्चारित करते हैं भूत-पिशाच निकट नहिं आवै मगर यह पिशाच भूत जैसा नहीं होता था यह भय का भूत नहीं था इसका खौफ तारी रहा है !
मध्य एशिया से इस जाति ने भारत वर्ष में प्रवेश किया और आर्यों से इनका जगह-जगह संघर्ष हुआ शुभ और धार्मिक कार्य में बाधक पिशाच स्त्रियों और बच्चों को अधिक कष्ट देते थे कच्चा खा जाते थे इनकी भाषा पैशाची बड़ी उन्नत स्थिति में थी ! ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में विद्वान गुणाढ्य ने “वृहत कथा” नामक ग्रंथ पैशाची भाषा में ही लिखा था ! यह रूद्र के उपासक थे और इनमें कच्चा मांस खाने की प्रथा थी जब जहाँ चाहें छिप व प्रकट हो जाते थे और दोनों संध्याओं में विचरण करते थे ! वास्तव में यह पिशाच कहीं गए नहीं ! यहीं अखंड भारत में यह गुप्त-विलुप्त हो गए मगर समाप्त नहीं हुए ! ‘मिक्स’ हो गए होंगे ! आज जहां-तहां हो रहे पैशाचिक कृत्य इसका उदाहरण हैं ! अब इनके खान-पान का तरीका जरूर बदल गया है ! अब यह पका कर खाते हैं और उजड़े घरों की जगह उजले घरों में रहते हैं ! इन्होंने विभिन्न धर्मों का चोला भी ओढ़ लिया है ! राजनीति इनके साथ है ! इन बेदिमागियों, आसामाजिकों की संख्या बढ़ती जा रही है ! उस समय तो आर्यों ने काफी हद तक इन पर नियंत्रण कर लिया था मगर अब यह नियंत्रण से बाहर होते दिख रहे हैं ! इनमें से कुछ तो आपके प्रतिनिधि भी बन चुके हैं !
अचानक किसी को बच्चा-चोर कह कर भयंकर रूप से पीटने लगना, स्त्रियों और बच्चों पर बलात्कार की बढ़ती घटनाएं, राह चलती औरतों को खरीददार की तरह लखने, एक से एक भयावह कृत्य, वृद्धों को प्रताड़ित करने, उन्हें त्यक्त कर देने, तरह-तरह से निर्मम हत्याएं करने, बूढ़ी मां को चुपके से छत से फेंक कर उसके गिर जाने का शोर करने- यह सब पैशाचिक कृत्य ही तो हैं ! व्यभिचार को तो अब क़ानून ने ही छूट देकर उसकी परिभाषा बदल दी है चूंकि उस पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे थे !
नव-पिशाचों का बोलचाल पैशाचिक भाषा में तो नहीं है पर इनकी बात-बात में मां-बहन की गालियों के कंटीले-फूल झड़ते हैं ! भाई-भाई, बाप-बेटा एक दूसरे को देते हैं ! रास्ते में चारों तरफ आपको यत्र-तत्र अश्लीलता दिखाई और सुनाई पड़ेगी ! किसी को कहीं गाड़ी-वाड़ी का थोड़ा धक्का लग जाए फिर देखिये ! माँ की गाली से ही वार्तालाप शुरू होगा ! ऐसा नहीं है कि संस्कारवानों का देश-समाज से सम्पूर्ण लोप हो गया है मगर सच्चाई यही है कि संस्कारहीन पिशाचों की संख्या अत्यधिक बढ़ी है और बढ़ती जा रही है समाज के लिए यह एक खतरनाक संकेत है !