बिगड़ी ट्रैफिक/यातायात व्यवस्था पर हर कोई बात करना चाहता हैं और जहाँ जब मौका मिले न मिले अपनी बात घुसेड ही देता हैं पर क्या आपको नही लगता ट्रैफिक व्यवस्था का ज़िम्मा जितना पुलिस का हैं उतना हम शहरियों का भी हैं खामियां हर शहर में हैं पर कही कम कही अधिक ग्राफ़ ऊपर नीचे मिलेगा..बात सागर की करते हैं यहां ट्रैफिक दवाब तेज़ी से बड़ रहा हैं शहर वही हैं पर वाहनों में इज़ाफ़ा हो रहा हैं यह शहर हिल(पहाड़ी) पर बसा हुआ हैं और हर कोई सॉर्ट कट चाहता हैं हमें लाइन कहाँ पसंद हैं बस लाइन तोड़ आगे निकलेंगे और जाम इख्तियार कराकर ही दम लेंगे सही हैं क्योंकि हम सागरिये हैं और को का के रओ जैसे गर्म शब्द हमरी जुबान पर रखे रहते हैं…
खैर एक हालही का मामला बता रहा हूँ जब यातायात पुलिस के DSP संजय खरे शहर भृमण पर थे यहाँ कभी कभार वाली बात नही यह वो रोज ही करते हैं और व्यवस्था पर निगाहें रखते हैं इसी दौरान एक मोटरसाइकिल उन्हें दिखी जिस पर पुलिस लिखा था और नम्बर भी नही थे गाड़ी को जैसे तैसे रुकवाया गया डिप्टी साहब ने कागजात पूछे जिसमें बीमा अपडेट नही मिला और नम्बर तो थे ही नही सो यातायात कटरा चौकी गाड़ी लाई गई…गाड़ी पर चलानी कार्यवाही की गई और नम्बर डालने और पुलिस लिखा हटवाने की शख़्त हिदायत के बीच गाड़ी को रवाना किया गया…ताज्जुब की बात वही गाड़ी 3 दिन बाद फिर डिप्टी साहब को बाजार में दिख गयी और उसी सूरत में..न नम्बर और पुलिस लिखा यथावत फिर क्या था गाड़ी को यातायात थाने लाया गया और गाड़ी की नम्बर प्लेट खोल उसपर अधिकारी ने स्वयं नंबर लिखवाया..पुलिस लिखा क्यों हैं पर बात हुई तो पता लगा बड़े भैया के ससुर साहब विदिशा जिले में पुलिस विभाग में पदस्थ हैं और ये गाड़ी दहेज़ में मिली हैं..अब अधिकारी की भौहों तन गयी चलानी कार्यवाही हुई..इस बार मामला गंभीर हो गया था और DSP संजय खरे किसी भी सूरत में नंबर लिखवा कर पुलिस मिटवाने में लग गए..और 1000 रुपये का चालान भी किया गया…अब बताइये शहरियों का कोई कर्तव्य नही व्यवस्था में सुधार लाने का ..शहर हमारा हैं प्राथमिकता भी हमारी हैं…पर ज्ञानवर्धक चर्चाएं बस हो रही हैं अमल में नियम लाना हमारी शान के खिलाफ़ हैं..
गजेंद्र ठाकुर की कलम 9302303212