जानें क्या हैं NCR-FIR और जीरो FIR कब कहां और कैसे होता है इनका इस्तेमाल

जानें क्या हैं NCR,-FIR और जीरो FIR कब-कहां और कैसे होता है इनका इस्तेमाल।

देश में आयेदिन हर किसी के साथ छोटी-बड़ी अपराधिक घटनाएं घटती है ऐसे कोई थाने के चक्कर कटाने से कतराता है मगर कुछ लोग साहस करके जाते है थाने में तो पुलिसवाले कभी कानून के नाम पर पीड़ित शख्स को एक थाने से दूसरे थाने दौड़ाया करते है. तो कभी केस को मामूली बनाने का दबाव डाला जाता है. आइए देखें इस मामले में क्या हैं आपके अधिकार

अपराध दो तरह के होते हैं. संज्ञेय (कॉग्निजेबल) और असंज्ञेय (नॉन-कॉग्निजेबल). असंज्ञेय अपराध बेहद मामूली अपराध होते हैं. मसलन मामूली मारपीट आदि. ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं की जाती. पुलिस एनसीआर काटती है और मामला मैजिस्ट्रेट को रेफर कर दिया जाता है. दूसरी तरफ संज्ञेय अपराध गंभीर किस्म के अपराध होते हैं मसलन किसी पर गोली चलाना, डकैती या किसी के घर को आग लगा देना. इस तरह के अपराधिक घटनाओं के बाद पीड़ित तीन तरीकों से पुलिस थानों में शिकायत दर्ज करा सकता है।

• FIR (प्राथमिकी या प्रथम सूचना रपट)
सीआरपीसी की धारा 154 के तहत पुलिस को संज्ञेय मामलों में एफआईआर दर्ज करना जरूरी है. पुलिस आनाकानी करे, तो शिकायती डीसीपी को इसकी शिकायत कर सकता है. इसके बाद डीसीपी के निर्देश पर थानेदार को एफआईआर करनी होगी. शिकायती ने जो शिकायत थाने में की है, अगर एफआईआर में मजमून उसके मुताबिक न लिखा गया हो तो शिकायती दस्तखत करने से मना कर सकता है। अगर थाने और आला पुलिस अधिकारियों के सामने की गई शिकायत के बावजूद पुलिस एफआईआर दर्ज करने को तैयार न हो, तो पीड़ित पक्ष इलाके के चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट या अडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट से सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत शिकायत कर सकता है। इसके बाद केस संबंधित मैजिस्ट्रेट को रेफर होता है और शिकायती मैजिस्ट्रेट के सामने अपना पक्ष रखता है. अगर मैजिस्ट्रेट शिकायती की बातों से संतुष्ट हो जाए तो फिर एफआईआर का ऑर्डर करता है. एफआईआर किए जाने के बाद पीड़ित पक्ष को एफआईआर की कॉपी भी दी जानी चाहिए. पीड़ित पक्ष एफआईआर के लिए हाई कोर्ट का भी दरवाजा खटखटा सकता है. हाई कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिकाकर्ता अर्जी दाखिल कर गुहार लगा सकता है।

• जीरो FIR क्या है?
हर पुलिस स्टेशन का एक ज्युरिडिक्शन होता है. यदि किसी कारण से आप अपने ज्युरिडिक्शन वाले थाने में नहीं पहुंच पा रहे या आपको इसकी जानकारी नहीं है तो जीरो एफआईआर के तहत आप सबसे नजदीकी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवा सकते हैं. जीरो एफआईआर में क्षेत्रीय सीमा नहीं देखी जाती. इसमें क्राइम कहां हुआ है, इससे कोई मतलब नहीं होता. इसमें सबसे पहले रिपोर्ट दर्ज की जाती है. इसके बाद संबंधित थाना जिस क्षेत्र में घटना हुई है, वहां केज्युरिडिक्शन वाले पुलिस स्टेशन में एफआईआर को फॉरवर्ड कर देते हैं. यह प्रोविजन सभी के लिए किया गया है. इसका मकसद ये है कि ज्युरिडिक्शन के कारण किसी को न्याय मिलने में देर न हो और जल्द से जल्द शिकायत पुलिस तक पहुंच जाए।

• निर्भया रेप कांड के बाद बना एक्ट
जीरो एफआईआर का कॉन्टेप्ट दिसंबर 2012 में हुए निर्भया केस के बाद आया. निर्भया केस के बाद देशभर में बड़े लेवल पर प्रोटेस्ट हुआ था. अपराधियों के खिलाफ सिटीजन सड़क पर उतरे थे. इसके बाद जस्टिस वर्मा कमेटी रिपोर्ट की रिकमंडेशन के आधार पर एक्ट में नए प्रोविजन जोड़े गए. दिसंबर 2012 में हुए निर्भया केस के बाद न्यू क्रिमिनल लॉ (अमेडमेंट) एक्ट, 2013 आया।

• जीरो एफआईआर के फायदे..
इस प्रोविजन के बाद इन्वेस्टिगेशन प्रोसीजर तुरंत शुरू हो जाता है. टाइम बर्बाद नहीं होता. इसमें पुलिस 00 सीरियल नंबर से एफआईआर लिखती है. इसके बाद केस को संबंधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है. जीरो FIR से अथॉरिटी को इनिशिएल लेवल पर ही एक्शन लेने का टाइम मिलता है. यदि कोई भी पुलिस स्टेशन जीरो एफआईआर लिखने से मना करे तो पीड़ित सीधे पुलिस अधिक्षक को इसकी शिकायत कर सकता है और अपनी कम्प्लेंड रिकॉर्ड करवा सकता है. एसपी खुद इस मामले में इन्वेस्टिगेशन कर सकते हैं या फिर किसी दूसरी अधिकारी को निर्देशित कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि कोई भी पुलिस ऑफिसर एफआईआर लिखने से इंकार करे तो उस पर डिसिप्लिनरी एक्शन लिया जाए. कोई व्यक्ति चाहे तो वह ह्युमन राइट्स कमीशन में भी जा सकता है।

• नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट (NCR)
असंज्ञेय अपराध में सीधे तौर पर एफआईआर दर्ज किए जाने का प्रावधान नहीं है। ऐसे मामले में पुलिस को शिकायत दिए जाने के बाद पुलिस रोज़नामचा आम में एंट्री करती है और इस बारे में कोर्ट को अवगत करा दिया जाता है। एनसीआर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 के अंतर्गत दर्ज़ की जाती है पुलिस को ऐसे मामलों में बिना वारंट गिरफ्तार का अधिकार नहीं होता है न ही पुलिस कोर्ट की अनुमति के बिना कारवाही कर सकती है। पुलिस स्वतः संज्ञान नहीं ले सकती है।

सादर :-सुरेश शुक्ल डायरेक्टर जनरल नेशनल क्राइम इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो
नई दिल्ली, भारत

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