वरिष्ठ पत्रकार रजनीश जैन जी की कलम से
मप्र सागर–/वनविभाग वालों से यह तो उम्मीद की ही जाती है कि वे खाल और हड्डियों के ढांचे से प्रथम दृष्टया वन्य प्राणी की पहचान में माहिर होंगे। …कल सागर के गोपालगंज थाना क्षेत्र में हुई कार्यवाही में जिन खालों को तेंदुए की खाल होना बता कर वाहवाही लूटी जा रही है उसे चित्र देख कर ही बताया जा सकता है कि वह तेंदुए की खालें नहीं हैं। तेंदुआ इतने बड़े बालों वाला नहीं होता।
इस रंग का नहीं होता, इन खालों पर काले धब्बे भी नहीं दिख रहे जो हर उम्र के तेंदुए में होते हैं। हालांकि बरामद खालें लोमड़ी प्रजाति की ज्यादा लग रही हैं। बरामदगी के बाद खालों को फैला कर फोटो खींची जाती हैं लेकिन यहां शायद जानबूझकर पुलिंदा बना कर फोटो लिए गए हैं।…बरामद खोपड़ी के बारे में भी चुप्पी साध ली गई जबकि वह नीलगाय की प्रतीत होती है। हालांकि जिन भी प्राणिंयो के अवशेष हो वन महकमे की यह कार्यवाही सराहनीय है फिर भी ईनाम और सुर्खियों के लालच में हर बरामदगी को तेंदुए और शेर का बताए जाने से उनकी मूर्खता का संदेश भी लोगों तक जाता है। …जब खाल के परीक्षण की रिपोर्ट आएगी तब उसकी खबर विभाग द्वारा दबा ली जाएगी। एक बहुचर्चित घटनाक्रम में आज तक वनविभाग ने देहरादून की रिपोर्ट और चालान की खबरों को मीडिया के सामने नहीं रखा।