सागर–साप्ताहिक अख़बार सैनिक गर्जना के संपादक श्री छोटेलाल भारतीय जी की ये हालत देख़ कर आँखे भर आई, आज सुबह किसी अपने ने सूचित किया और 108 पर इत्तला की, दादा की स्थति नाजुक बताई जा रहीं हैं एक पत्रकार अपने काम के चलते परिवार नाते रिस्तेदारो से दूर होता जाता हैं पर इस अवस्था में ये सब इनसे दूर क्यों, क्या पत्रकारिता की परिपक्त्ता यही हैं, आज न तो इनका गुट इनके साथ हैं और न मित्र यार ??
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पत्रकारिता का दुखद काल,मेरी आँखे भर आई !!

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